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Thursday, March 4, 2021

सब्जी पुड़ी कि वजह से ट्रेन छुटना

मैरी पिछली पोस्ट " एशवर्या और सलमान मालवा एक्सप्रेस मे"

पर आपका सभी का बहुत प्यार मिला उसके लिए मै आपका बहुत बहुत आभारी हुँ। धन्यवाद

इस बार फिर ट्रेन का एक छोटा सा किस्सा सुना रहा हुँ इसे महसूस किजिए आशा है आपको पड़ने मे अच्छा लगेगा।



तो दोस्तों बात है 2008 कि जब मै और मैरा दोस्त जयपुर घुमने निकले वैसे घुमना तो एक बहाना था दोस्त को कुछ काम था तो वो मुझे साथ ले गया। घर वाले मैरे घुमने को लेकर बड़े परेशान थे लेकिन मै हर किसी न किसी बहाने से निकल हि जाता था।

तो हम दोनों 3 दिनों तक जयपुर घुमे और अब  घर वापसी कि तैयारी थी सही बताऊ तो मैरी घर जाने कि इच्छा नहीं थी । 

उन दिनों आनलाइन समय पता करने का कोई साधन नहीं था फिर न्यूज पेपर कि कटिंग जो कि एक भोजनालय पर थी उसमें समय देखा तो ट्रेन शाम के 5 बजे थी 4:30 पर समय देखा और सिधे ताबड़तोड़ स्टेशन पहुंचे 15 मिनट मे स्टेशन पहुचे भूक अलग सता रही थी लेकिन खाना खाने का समय नहीं मिला स्टेशन पहुचते हि टिकट कि लाइन मे लगे फिर वहां भी 10 मिनट लग गए उतने मे ट्रेन आ गयी लेकिन 2008 मे जयपुर मे बम ब्लास्ट हुआ था  और उसके एक महिने बाद यानी जुन कि भयंकर वाली गर्मी मे हम वहां गये थे । बम ब्लास्ट कि वजह से वहां पुलिस कि कड़ी चेकिंग चल रही थी दोनों एक दुसरे का मुह देखते हुए बस यही सोच रहे थे है भगवान ट्रेन न निकल जाए लेकिन मेरा दोस्त तो ये भी सोच रहा था कि कहीं ये पुलिस वाले अपने को पकड़ कर पुछताछ करने लगे तो ? और वो लाइन से निकल कर बाहर पुलिस वालो को बार बार देख रहा था 😆 तब वहां एक अंकल ने बोला बेटा ट्रेन 20 मिनट रुखेगी ज्यादा जल्दी मत करो अंकल कि बात सुनकर दिल को तसल्ली मिली चेकिंग होने के बाद जैसे तैसे ट्रेन मे जाकर बेठे लेकिन भुक से बुरा हाल था दोस्त बोला भाई तु कुछ खाने को ले आ कुछ खा लेते है। भुक के मारे उसकी शक्ल मुर्झाए हुए गोबी के फुल जेसी हो गई थी।

बैचारे पर तरस खाके मै भी निचे उतर कर निकल गया कुछ लेने हमारी ट्रेन प्लेटफार्म नं 4 पर थी और खाने का सामान प्लेटफार्म नं 1, 2 पर था ... फिर मै प्लेटफार्म नं 1 पर पहुंचा वहाँ गरमागरम पुड़िया तल रही थी मैने 40 रू कि पुड़ी जिसके साथ दो दौना भरकर सब्जी हरी मिर्च और प्याज फ्रि थी (उन दिलो भुक लगने पर सफर मे हम खाना खाते थे चिप्स कुरकुरे नहीं)

 मैरा तो पेकिंग करवाते करवाते हि मुह मे पानी आ रहा था उतनी दैर मे ट्रेन ने अपनी सिटी बजा दि और यहां मेरी सिट्टी पिट्टी गुम हो गयीं मै ब्रिज कि और भागा प्लेटफार्म नं 1 से 4 तक पहुचते पहुचते ट्रेन ने प्लेटफार्म छोड़ दिया मै जोर जोर से चिल्ला रहा था कोई चेन खिच दो और ट्रेन कि पिछे हाथ मे सब्जी पुड़ी कि थेली लेकर दोड़ रहा था और बस दिलवाने दुल्हनिया ले जाएंगे वाला सिन याद कर रहा था और सोच रहा काश कोई मुझे हाथ दे और अन्दर खिच ले लेकिन एसा हो न सका (यह एक अंधविश्वास है जो कि फिल्मों मे होता है)

 और ट्रेन छुट गई मे जुन कि भयंकर गर्मी (वो भी राजस्थान की) मे पसीने मे लथपत लथपथ ट्रेन को देखता रह गया और ट्रेन मे दोस्त मैरे वियोग मै जोर जोर से रोता रहा लेकिन चेन खिचने कि हिम्मत नहीं कर सका (एक नंबर का रोतलु और डरपोक है)

ट्रेन के जाने के बाद पांच मिनट तक देखता रहा फिर पेट से आवाज आई कि ....भाई जुदाई का गम छोड़ और जल्दी से पार्सल खोल फिर जल्दी से मै प्लेटफार्म पर बेठकर सब्जी पुड़ी खाई और दोस्त के नाम से बची पुडिया कुत्ते को खिलाई 😆 

उसके बाद इन्क्वायरी पर अगली ट्रेन का पुछने गया लेकिन अगली ट्रेन रात को 12 भजे थी अब तो दिमाग के घोड़े द़ौड रहे थे कि अब करना क्या है।

 और बार बार यही खयाल आ रहा था कि काश प्लेटफार्म नं 4 से वो ठंडे भजीये हि खा लेता तो ज्यादा अच्छा होता 😆

सबसे बुरा दोस्त के साथ हुआ टिकट भी मैरे पास और खाना भी यहां तक कि पैसे भी उसकी जेब मे मात्र 50 रुपये थे।

(800 रूपये लेकर जयपुर आये थे 100 मैरे पास बचे थे और 50 उसके पास)

कुछ भी हो भारतीय रेलवे कि बात हि अलग है हर यात्रा मजेदार और आनंददायक होती है।

हर यात्रा मे कुछ रोमांचक होता है....


Note: picture google se लिया है क्योंकि 2008 मे तो हमारे पास मोबाइल भी नहीं हुआ करता था 😆

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