एक अनाड़ी घुमक्कड.।।
2012 मैं मेने अपनी पहली यात्रा शुरू करी थी, मन मे डर बहुत था पानी से डर , उचाई से डर, लोगों कि भीड़ से डर, अंधेरे से डर और पता नहीं कितने डर और कभी कभी खुद को खोने का डर।
एक दिन बस यु ही बिना कुछ सोचे समझे बस घर वालो को कहा मुझे वेष्णो देवी जाना है। मेने फोन पर हि बताया ( मैं उस समय इंदौर मे था और मेरा परिवार वहाँ से 250km दुर) और बस मे इंदौर से निकल गया अपनी bajaj Discover 100 cc. मोटर सायकल से और वो सफर 30 April 2012 से जो शुरू हुआ वो आज तक चल रहा है. मै via mandsaur, chittorgarh, udaipur, jaipur होते हुए दिल्ली पहुच गया. और यह बात न घर वालों को पता थी न दोस्तों को , मोटरसाइकिल कि अब हालत 1000km मै हि खराब हो चुकी थी।
मोटरसाइकिल दिल्ली मे एक पुराने दोस्त के पास रखी और वहाँ से रेलवे स्टेशन पहुच गया वहाँ कुछ लोग अमरीतसर कि बातें कर रहे थे , और बस ठान लिया कि मुझे भी जाना है कुछ घंटो के इंतज़ार के बात रेल आई टिकट हाथ मे था और डर इतना था मानो मे कोई गलत काम करने जा रहा हु या कुछ हि देर मे मेरी परुक्षा कि रिजल्ट आने वाला हैं।
डरते डरते रेल मे बेठा और अमरीतसर पहुँच गया पुरे सफर मे किसी से बात नहीं करी और जब अम्रीतसर पहुच गया वहाँ गुरुद्वारे मे 2 दिन रहने के बाद कुछ लोगों से बात करी तो बहुत कुछ सिखने को मिला उनमें से एक को मेने अपनी कहानी सुनाई उन्हें बहुत अच्छा लगा फिर उन सरदार जी ने कुछ नंबर दिये और कहा कि बिना डरे बस निकल जाऔ और कोई दिक्कत आये तो इन लोगों को फोन करना ये आपकी मदद करेंगे।
फिर मेरा एक दोस्त BSF मे है उसका नंबर मेने एक दोस्त से लिया और उससे जब बात करी तब पता लगा कि उसकी पोस्टिंग जम्मू मे है यह सुनते हि थोडी हिम्मत आई।
जम्मू पहुच कर मेरे फोजी दोस्त से मिला उसके साथ 4 दिन जम्मू मे रहा पहली बार बहुत सारे फोजीयो से मिला. सबसे बाते करी और सबको फिर से मेरी कहानी सुनाई. सब बडे खुश हुए सबने अपने अपने experience share किये सबसे बातें करते करते पता चला लेह लद्दाख के बारे मे और बस उन फोजी भाइयों और मेरे दोस्त कि मदद से आर्मी के ट्रक से निकल पड़ा एक अनोखे सफर पर.
और मै सब फोजी भाईयो के अलग अलग reference से, श्रीनगर, द्रास, कारगिल, लेह और पत्थरसाहिब सभी जगह अकेला घुमा और हर जगह आर्मी केंप मे रूखा उनके साथ हि खाना खाया.
इतना घुमने के बाद तो मानो मेरे पंख उग गये थे और मुझे लग रहा था कि मे पहाड़ों मे उड़ रहा हु।
वहाँ से वापस जम्मू आया वहाँ से आखीरकार BSF के VIP पास से वेष्णो देवी माँ के दर्शन किए.
वहाँ हे वापस जम्मू ।।
और अब मे आपको बता दु कि मै अब न अनाड़ी था न डरपोक अब तो मै सिर्फ एक घुम्मकड़ बन चुका था।।
लोगों से नए नए Reference मिलने का सिलसिला चलता रहा और मे वहाँ से पठानकोठ पहुच गया फिर धर्मशाला , मेकलोडगंज, कसोल, पालमपुर, शीमला, चंडीगढ़, करनाल और जहाँ जहाँ से लौगो का बुलावा आ रहा था मेरा सफर उसी हिसाब से चल रहा था।
और अब तो बुलावा जौशीमठ से आ चुका था तो फिर क्या था मैं उत्तराखंड कि यात्रा पर निकल गया।।
इस पुरी 45 दिनों कि यात्रा से मुझे एन नया जन्म मिल चुका था. सब कुछ बदल गया था.
इस पुरे सफर मे सफसे ज्यादा साथ BSF के मेरे फोजी भाईयों का मिला उनके बिना शायद ये मुमकिन नहीं था।।
और उसके बाद उन सब लोगो का जिदंगी भर आभारी रहुगा जिन्होंने मुझे invitation दिया और मेरी हर संभव मदद करी
45 दिनों कि यात्रा कि कहानी पांच मिनट मे सुनाना थोडा मुश्किल है लेकिन जितने विस्तार मे सुना सकता था मेने पुरी कोशिश करी।।
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